भाषा एवं साहित्य >> हिंदी तुकांत कोश हिंदी तुकांत कोशरमानाथ सहाय
|
7 पाठकों को प्रिय 427 पाठक हैं |
प्रस्तुत है हिन्दी तुकांत कोश....
Hindi Tukant Kosh
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भारत की अग्रणी भाषा होने के नाते हिंदी के लिए यह अपरिहार्य हो गया है कि वह नवप्रचलित नानाविध संदर्भानुकूल प्रभावी प्रयुक्तियों के जिसमें तुकांतता (राइमिंग) भी एक है, अपनाए। प्रस्तुत ‘हिंदी तुकांत कोश’ इस दिशा में एक आरंभिक प्रयास है। ‘हिंदी तुकांत कोश’ के प्रयोग से हिंदी के जानने वाले, विशेषतः हिंदी के छात्र, हिंदी की प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति शैली सै परिचित हो जाएँगे। छात्र अपने पाट्यक्रम में निर्धारित प्रोजेक्टों को समुचित रूप से पूरा करन में समर्थ होंगे और आवश्यकता पड़ने पर या शौकिया पद्य रचना संभवतः कविता रचना करने में सफल हो सकेंगे। साथ ही वाणिज्यिक विज्ञापनों जैसे ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’ बालगीतों फिल्मी टी.वी. गीतों तथा जनशक्ति प्रदर्शक नारों की रचना में भी यह कोश निस्संदेह उपादेय होगा।
हम सभी अंत्याक्षरी के खेल से भी परिचित हैं। कक्षा में अध्यापक की तथा घर में माता-पिता की सहायता से प्रस्तुत पुस्तक में ‘हिंदी अंत्याक्षर कोश’ और ‘हिंदी वर्ग पहेली कोश’ में दो-शब्दसूचियों के आधार पर नाना प्रकार की शब्दस्तरीय अंत्याक्षरी खेलों (जैसे शब्द-चार अक्षरों के ही हों या शब्द कितने भी अक्षरों के हों, पर उनके बीच में ‘म’ अवश्य हो) की रचना बालक कर सकते हैं।
वर्ग पहली खेलते समय जानकारी प्रधान संकेतों को देखते हुए शब्दों का चयन करना होता और इस कारण खेल-खेल में ही कक्षा या अन्यत्र अर्जित ज्ञान का परीक्षण एवं पुनर्बलन होता है। इस पुस्तक में दिए ‘हिंदी वर्ग पहले कोश’ में नई-नई पहेलियों के निर्माण हेतु प्रचुर मात्रा में सामग्री दी हुई है, जिसका उपयोग बालक, शिक्षक तथा माता-पिता कर सकते हैं।
‘हिंदी तुकांत कोश’ के नाम में समाहित इन तीनों कोशों का शिक्षा, हिंदी भाषा-शिक्षण हिंदी भाषा के वैज्ञानिक विवेचन वाणिज्जिक विज्ञापन लेखन, हिंदी पद्म रचना आदि में पूरा-पूरा सदुपयोग होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
हम सभी अंत्याक्षरी के खेल से भी परिचित हैं। कक्षा में अध्यापक की तथा घर में माता-पिता की सहायता से प्रस्तुत पुस्तक में ‘हिंदी अंत्याक्षर कोश’ और ‘हिंदी वर्ग पहेली कोश’ में दो-शब्दसूचियों के आधार पर नाना प्रकार की शब्दस्तरीय अंत्याक्षरी खेलों (जैसे शब्द-चार अक्षरों के ही हों या शब्द कितने भी अक्षरों के हों, पर उनके बीच में ‘म’ अवश्य हो) की रचना बालक कर सकते हैं।
वर्ग पहली खेलते समय जानकारी प्रधान संकेतों को देखते हुए शब्दों का चयन करना होता और इस कारण खेल-खेल में ही कक्षा या अन्यत्र अर्जित ज्ञान का परीक्षण एवं पुनर्बलन होता है। इस पुस्तक में दिए ‘हिंदी वर्ग पहले कोश’ में नई-नई पहेलियों के निर्माण हेतु प्रचुर मात्रा में सामग्री दी हुई है, जिसका उपयोग बालक, शिक्षक तथा माता-पिता कर सकते हैं।
‘हिंदी तुकांत कोश’ के नाम में समाहित इन तीनों कोशों का शिक्षा, हिंदी भाषा-शिक्षण हिंदी भाषा के वैज्ञानिक विवेचन वाणिज्जिक विज्ञापन लेखन, हिंदी पद्म रचना आदि में पूरा-पूरा सदुपयोग होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
प्रस्तावना
‘हिंदी अनादि शब्दकोश’ शब्दों का एक अद्भुत कोश हैं, जिसमें शब्दों के अर्थ तो नहीं दिए गए हैं, लेकिन 16000 शब्दों को इतने विविध आयामों और रूपों में प्रस्तुत किया गया है कि हिंदी के कई पक्षों पर काम करने वाले लेखकों, साहित्यकारों, भाषावैज्ञानिकों और भाषाकर्मियों को कई प्रकार की विशिष्ट समस्याओं का समाधान इसमें मिल जाएगा। अन्य कोशों में अकारादि क्रम शब्द के प्रारंभिक अक्षरों से शुरू होता है, लेकिन इसमें क्रम शब्द के अंतिम अक्षर से पीछे की ओर होता है। इससे शब्द संबंधी वे खास सूचनाएँ उपलब्ध हो जाती हैं जो अन्य सामान्य कोशों में नहीं है।
अंत्याक्षरी में रुचि रखनेवालों के लिए यह अत्याक्षरी कोश का काम करता है, कवियों के लिए यह तुकांत कोश का काम करता है; क्रॉसवर्ड भरनेवालों के लिए यह वर्गपहेली कोश का काम करता है, जिसमें शब्दों में अक्षरों के हर प्रयोग स्थान के लिए उपयुक्त विकल्प उपलब्ध है। भाषा सीखने वाले शिक्षार्थियों को यह खेल-खेल में शब्द का ज्ञान बढ़ाने, शब्दरचना की प्रक्रिया को समझने और शब्दों की वर्तनी सीखने का एक सशक्त उपकरण है (जैसे पूजाग ह, नाट्यग बंदीग ह, स्नानग ह, कारगा ह, बालग ह, आदि। हिंदी शब्दों में अक्षरों के वितरण की पद्धति को समझाने के लिए यह कोश अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी आधार सामग्री का काम करता है।
आज विज्ञापन और मार्केटिंग का युग है, जिसमें शब्दों के अर्थ पर कम और उनकी ध्वन्यात्मकता राइमिंग, संगीतात्मकता और प्रभावोत्पादकता पर ज्यादा जोर दिया जाता है। अकसर भाषा का साधारण और असामान्य प्रयोग कर चमत्कार पैदा करने की कोशिश की जाती है। शब्द का नाद, जो अभी तक पद्म की संपत्ति थी, अब विज्ञापन के जरिए आधुनिक मार्केटिंग और मनोरंजन की भाषा का अंग बन चुका है-जैसे जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। ध्यान खींचने वाले शीर्षकों और भावोत्पादक नारों की रचना करने के लिए शब्दों में असाधारण अर्थ डाले जा रहे हैं। अंत्याक्षरी जिसकी हमारी दीर्घ परंपरा ही है, एक बार फिर दूरदर्शन आदि मनोरंजन का एक प्रमुख कार्यक्रम बन गया है। गीत और पद्यरचना में हर तरह के तुकों के नए प्रयोग हो रहे हैं। क्रॉसवर्ड और शब्द-योजन से जुड़े अनेक कार्यक्रम दूरदर्शन एवं अन्य टी.वी. चैनलों पर आम हो चुके हैं। यद्यपि भाषा के शब्दों की ये भूमिकाएं हमारे अनुप्रास आदि अलंकारों की परंपरा से जुड़ी हैं, लेकिन वाणिज्य पुरस्कार और प्रतियोगिताओं की होड़ इसी युग की देन है। यह कोश इन सभी जरूरतों को पूरा करता है।
कोश-निर्माण का कार्य स्वयं में एक कठिन साधना है, लेकिन इस प्रकार का विशिष्ट कोश विकसित करना, जिसकी परंपरा हमारे पास नह के बराबर है, एक अत्यंत श्रमसाध्य काम है। अंग्रेजी में इस प्रकार के कोश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। यह कोश जो हिंदी में अपनी तरह का प्रथम प्रयास है एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करेगा।
प्रो. रमानाथ सहाय, जो कई वर्षों से इस कोश पर कार्यरत थे, संस्कृत, हिंदी, भाषाविज्ञान और शिक्षाशास्त्र के प्रकांड विद्वान हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान में प्रोफेसर के रूप में उनका बहुत लंबा अनुभव रहा है और अनेक महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर चुके हैं। इस कोश में उन्होंने भारत की दीर्घ परंपरा को आधुनिक कोशविज्ञान कला और भाषाविज्ञान के सिद्धांतों से जोड़ा है। साथ ही कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की सहायता से कई नए प्रयोग किए हैं। आशा है, आधुनिक हिंदी शिक्षण हिंदी भाषा के विकास और विभिन्न कंप्यूटर अनुप्रयोगों में इस कोश का देश-विदेश में पूरा सदुपयोग होगा।
अंत्याक्षरी में रुचि रखनेवालों के लिए यह अत्याक्षरी कोश का काम करता है, कवियों के लिए यह तुकांत कोश का काम करता है; क्रॉसवर्ड भरनेवालों के लिए यह वर्गपहेली कोश का काम करता है, जिसमें शब्दों में अक्षरों के हर प्रयोग स्थान के लिए उपयुक्त विकल्प उपलब्ध है। भाषा सीखने वाले शिक्षार्थियों को यह खेल-खेल में शब्द का ज्ञान बढ़ाने, शब्दरचना की प्रक्रिया को समझने और शब्दों की वर्तनी सीखने का एक सशक्त उपकरण है (जैसे पूजाग ह, नाट्यग बंदीग ह, स्नानग ह, कारगा ह, बालग ह, आदि। हिंदी शब्दों में अक्षरों के वितरण की पद्धति को समझाने के लिए यह कोश अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी आधार सामग्री का काम करता है।
आज विज्ञापन और मार्केटिंग का युग है, जिसमें शब्दों के अर्थ पर कम और उनकी ध्वन्यात्मकता राइमिंग, संगीतात्मकता और प्रभावोत्पादकता पर ज्यादा जोर दिया जाता है। अकसर भाषा का साधारण और असामान्य प्रयोग कर चमत्कार पैदा करने की कोशिश की जाती है। शब्द का नाद, जो अभी तक पद्म की संपत्ति थी, अब विज्ञापन के जरिए आधुनिक मार्केटिंग और मनोरंजन की भाषा का अंग बन चुका है-जैसे जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। ध्यान खींचने वाले शीर्षकों और भावोत्पादक नारों की रचना करने के लिए शब्दों में असाधारण अर्थ डाले जा रहे हैं। अंत्याक्षरी जिसकी हमारी दीर्घ परंपरा ही है, एक बार फिर दूरदर्शन आदि मनोरंजन का एक प्रमुख कार्यक्रम बन गया है। गीत और पद्यरचना में हर तरह के तुकों के नए प्रयोग हो रहे हैं। क्रॉसवर्ड और शब्द-योजन से जुड़े अनेक कार्यक्रम दूरदर्शन एवं अन्य टी.वी. चैनलों पर आम हो चुके हैं। यद्यपि भाषा के शब्दों की ये भूमिकाएं हमारे अनुप्रास आदि अलंकारों की परंपरा से जुड़ी हैं, लेकिन वाणिज्य पुरस्कार और प्रतियोगिताओं की होड़ इसी युग की देन है। यह कोश इन सभी जरूरतों को पूरा करता है।
कोश-निर्माण का कार्य स्वयं में एक कठिन साधना है, लेकिन इस प्रकार का विशिष्ट कोश विकसित करना, जिसकी परंपरा हमारे पास नह के बराबर है, एक अत्यंत श्रमसाध्य काम है। अंग्रेजी में इस प्रकार के कोश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। यह कोश जो हिंदी में अपनी तरह का प्रथम प्रयास है एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करेगा।
प्रो. रमानाथ सहाय, जो कई वर्षों से इस कोश पर कार्यरत थे, संस्कृत, हिंदी, भाषाविज्ञान और शिक्षाशास्त्र के प्रकांड विद्वान हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान में प्रोफेसर के रूप में उनका बहुत लंबा अनुभव रहा है और अनेक महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर चुके हैं। इस कोश में उन्होंने भारत की दीर्घ परंपरा को आधुनिक कोशविज्ञान कला और भाषाविज्ञान के सिद्धांतों से जोड़ा है। साथ ही कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की सहायता से कई नए प्रयोग किए हैं। आशा है, आधुनिक हिंदी शिक्षण हिंदी भाषा के विकास और विभिन्न कंप्यूटर अनुप्रयोगों में इस कोश का देश-विदेश में पूरा सदुपयोग होगा।
नई दिल्ली
नव संवत्सर, 2061
नव संवत्सर, 2061
प्रो. सूरज भान सिंह
पूर्व अध्यक्ष,
वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग
पूर्व अध्यक्ष,
वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग
आमुख
प्रस्तुत ग्रंथ को ‘अनादि कोश’ की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि यहाँ शब्दों को जिस क्रम में रखा गया है वह ‘अनादि’ अर्थात् ‘अन आदि’ है अर्थात् ‘आदि अक्षर की दृष्टि से अकारादि क्रम में नह’ रखा गया है, जैसा कि सामान्य परिचित शब्दकोशों में आपको मिलता है। ‘अनादि कोश’ का नमूना कदाचित् प्रथम बार आपको इस ग्रंथ में दिखाई पड़ रहा है, किंतु भारत में इसकी जड़ें बहुत गहरी एवं पुरानी हैं और इसके अनेक रूप प्राचीन मनीशियों के समक्ष उपस्थित थे। उनमें से तीन रूपों के आप सबके सम्मुख बालप्रयासपूपेण रखा जा रहा है।
खंड 1 : तुकांत कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 11)
खंड 2 : अंत्याक्षर कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 73)
खंड 3 : वर्गपहेली कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 155)
आज इक्कीसवीं सदी में, जबकि सूचना प्रोद्योगिकी ने भारतीयों विशेषतः हिंदी भाषियों के क्योंकि मीडिया ने अपनी अभिव्यक्ति का सर्वोपयुक्त साधन हिंदी को स्वीकार किया है) जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों पर व्यापक परिवर्तन प्रस्तुत किए हैं और हिंदी भाषा पर यह विशिष्ट उत्तरदायित्व आ पड़ा है कि वह उनके अनुकूल अपने को ढाले, तब इस दिशा में इस कोश की महत्ता बढ़ गई है। इस परिप्रेक्ष्य में इस कोश के प्रमुख अनुप्रयोग क्षेत्र निम्नलिखित है।
1. विज्ञापनकला एंव जन-समूहोक्तियाँ (नारे)
2. बालगीतों और जनगीतों की रचना
3. साक्षरता अभियान में लिपि-शिक्षण तथा शब्दावली संवर्धन
4. शिशुओं और बालकों को लिपि, उच्चारण एवं शब्दावली शिक्षण
5. सरकारी कार्यालयों एवं बैंककर्मियों आदि को हिंदी भाषाशिक्षण
6. विदेशियों को हिंदी भाषाशिक्षण
7. हिंदी मात भाषियों में भी शब्दावली संवर्धन वर्गपहेली आदि द्वारा
8. हिंदी के भाषावैज्ञानिक विवेचन में लगे विद्वानों के लिए
9. कंप्यूटर साधित भाषा-अनुवाद एंव अन्य भाषा-व्यवहारों के लिए
इन तीन कोशों के अनुप्रयोगों की तर्कयुक्तता तथा कार्यशैली को भलीभाँति समझाने के लिए प्रत्येक कोश के पूर्व में परिचायिकाएँ दी गई हैं। इस ग्रंथ का आधार हिंदी के 16,000 सोलह हजार शब्द हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित हिंदी शब्दकोशों तथा भारत सरकार की ‘ब हत् प्रशासन शब्दावली (हिंदी-अंग्रेजी)’ से लिया गया है। पुनःस्मरण (रिकॉल) विधि से भी यदाकदा शब्द जोड़े गए हैं और फारसी-अरबी के या अंग्रेजी के शब्दों से कोई परहेज़ नह किया गया है, बशर्ते वे हिंदी में पच गए हों। यह कार्य दिसबंर 1997 से आरंभ हुआ था। अनेक शब्द इस बीच हिंदी में प्रचलन में आए होंगे, उनका समावेश अगले संस्करणों में ही संभव है।
इस कार्य के आरंभ करने के मूल में यह भावना थी कि विद्यालयों में हिन्दी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को सभी प्रकार की जानकारियाँ खेल-खेल में मिलें जैसा कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में होता है। इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका अध्यापकों और माता-पिता की होगी। बच्चों में तुकांत कविता करने की नैसर्गिक क्षमता होती है जिसे ये लोग अद्भावित कर सकते हैं। फिर परिधि और परास बढ़ता गया और वर्तमान रूप निकलकर आया।
इस प्रयास के प्रेरणास्रोत एंव प्रेरकसत्ता मेरे आराध्य देव शिवजी हैं और जिस प्रकार वे अर्धनारीश्वर रूप हैं, उसी प्रकार इस पूरे कार्य में मुझे अपनी अर्धागिंनी का सहयोग निरंतर मिलता रहा है।
खंड 1 : तुकांत कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 11)
खंड 2 : अंत्याक्षर कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 73)
खंड 3 : वर्गपहेली कोश (परिचय के लिए देखिए पृष्ठ संख्या 155)
आज इक्कीसवीं सदी में, जबकि सूचना प्रोद्योगिकी ने भारतीयों विशेषतः हिंदी भाषियों के क्योंकि मीडिया ने अपनी अभिव्यक्ति का सर्वोपयुक्त साधन हिंदी को स्वीकार किया है) जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों पर व्यापक परिवर्तन प्रस्तुत किए हैं और हिंदी भाषा पर यह विशिष्ट उत्तरदायित्व आ पड़ा है कि वह उनके अनुकूल अपने को ढाले, तब इस दिशा में इस कोश की महत्ता बढ़ गई है। इस परिप्रेक्ष्य में इस कोश के प्रमुख अनुप्रयोग क्षेत्र निम्नलिखित है।
1. विज्ञापनकला एंव जन-समूहोक्तियाँ (नारे)
2. बालगीतों और जनगीतों की रचना
3. साक्षरता अभियान में लिपि-शिक्षण तथा शब्दावली संवर्धन
4. शिशुओं और बालकों को लिपि, उच्चारण एवं शब्दावली शिक्षण
5. सरकारी कार्यालयों एवं बैंककर्मियों आदि को हिंदी भाषाशिक्षण
6. विदेशियों को हिंदी भाषाशिक्षण
7. हिंदी मात भाषियों में भी शब्दावली संवर्धन वर्गपहेली आदि द्वारा
8. हिंदी के भाषावैज्ञानिक विवेचन में लगे विद्वानों के लिए
9. कंप्यूटर साधित भाषा-अनुवाद एंव अन्य भाषा-व्यवहारों के लिए
इन तीन कोशों के अनुप्रयोगों की तर्कयुक्तता तथा कार्यशैली को भलीभाँति समझाने के लिए प्रत्येक कोश के पूर्व में परिचायिकाएँ दी गई हैं। इस ग्रंथ का आधार हिंदी के 16,000 सोलह हजार शब्द हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित हिंदी शब्दकोशों तथा भारत सरकार की ‘ब हत् प्रशासन शब्दावली (हिंदी-अंग्रेजी)’ से लिया गया है। पुनःस्मरण (रिकॉल) विधि से भी यदाकदा शब्द जोड़े गए हैं और फारसी-अरबी के या अंग्रेजी के शब्दों से कोई परहेज़ नह किया गया है, बशर्ते वे हिंदी में पच गए हों। यह कार्य दिसबंर 1997 से आरंभ हुआ था। अनेक शब्द इस बीच हिंदी में प्रचलन में आए होंगे, उनका समावेश अगले संस्करणों में ही संभव है।
इस कार्य के आरंभ करने के मूल में यह भावना थी कि विद्यालयों में हिन्दी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को सभी प्रकार की जानकारियाँ खेल-खेल में मिलें जैसा कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में होता है। इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका अध्यापकों और माता-पिता की होगी। बच्चों में तुकांत कविता करने की नैसर्गिक क्षमता होती है जिसे ये लोग अद्भावित कर सकते हैं। फिर परिधि और परास बढ़ता गया और वर्तमान रूप निकलकर आया।
इस प्रयास के प्रेरणास्रोत एंव प्रेरकसत्ता मेरे आराध्य देव शिवजी हैं और जिस प्रकार वे अर्धनारीश्वर रूप हैं, उसी प्रकार इस पूरे कार्य में मुझे अपनी अर्धागिंनी का सहयोग निरंतर मिलता रहा है।
आपरितोषाद् विदुषां न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम्।
बलवदपि शिक्षितानाम् आत्मन्यप्रत्यये चेतः।।
बलवदपि शिक्षितानाम् आत्मन्यप्रत्यये चेतः।।
आगरा
नव संवत्सर 2061
नव संवत्सर 2061
रमानाथ सहाय
हिंदी तुकांत कोश
अंत्यानुप्रास से अपरिचित शायद ही कोई हिंदीभाषी होगा, जिसने कभी रामायण, हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि पढ़ा या सुना न हो या किसी न किसी आरती को धार्मिक अवसर पर गाया न हो। धार्मिक क्षेत्र को छोड़ दें, तो भी हिंदी पढ़ते समय कविताएँ तो अवश्य पढ़ी होंगी और यहाँ-वहाँ अंत्यानुप्रास देखा होगा। इसके अतिरिक्त लोकगीतों, बालगीतों तथा फिल्मी एंव दूरदर्शन के गीतों में तुकांतता अतिबहुलता से मिलती है, और नारों एवं विज्ञापनों की तो आत्मा ही ‘राइमिंग’ है, हिंदीतुकांत कोश में इसी ‘राइमिंग’ और तुकांतता की दृष्टि से लगभग 140000 शब्दों को क्रमबद्ध किया गया है।
कोश की प्रस्तुति शैली
तुकांत कोश में ‘उपधा का स्वर+व्यंजन+स्वर को क्रमबद्धता का आधार बनाते हैं। देखने की सुविधा के लिए शब्दों को ऐसा मुद्रित किया गया है सभी तुकें उर्ध्वधर सीध में हों। इस विशेषता पर ध्यान दें कि एक सी तुक के शब्दों में पहले दो अक्षर वाले शब्द होंगे, फिर तीन अक्षर वाले, और फिर चार अक्षर वाले। तब दूसरा तुक चलेगा। उदाहरण के लिए
|
लोगों की राय
No reviews for this book